लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी
भाग 27
कच अपनी यात्रा की तैयारी करने लगा । सभी भाई और बहन उसकी यात्रा में काम आने वाली वस्तुओं की सूची बनाने लगे । दिशा निर्देशों का दौर चलने लगा । हर कोई अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने लगा । जो कभी जिंदगी में अपने घर से बाहर नहीं गया , वह भी यात्रा में बरती जाने वाली सावधानियों को बढा चढा कर बताने लगा । "ये करना और ये नहीं करना" इस संबंध में उसे बार बार याद दिलाया जाने लगा । रास्ते में क्या खाना है, क्या पीना है इसकी पूरी सूची बन गई । "अनजान लोगों से दूर ही रहना है , ज्यादा बात नहीं करनी है" आदि आदि बातें उसे समझाई जाने लगी ।
कच भी सबकी सुनता जा रहा था और मन ही मन मुस्कुराता जा रहा था कि सब लोग कितने उत्साहित हैं उसकी यात्रा को लेकर । सामान की सूची को देखने से पता चला कि बहुत सारा सामान हो गया था उसका । सामान पैक कराने में उसके बड़े भ्राता भारद्वाज भी उसकी मदद कर रहे थे । तभी गुरू ब्रहस्पति बोल पड़े
"उसे अकेले करने दो यह सब । वह विद्या सीखने जा रहा है कोई देशाटन करने नहीं जा रहा है । उसे वहां पर सब कुछ स्वयं को ही करना होगा । आज तुम लोग मदद कर दोगे कल कौन करेगा ? उसे अभी से आत्मनिर्भर बनने दो । यद्यपि उसे अभी थोड़ा कष्ट होगा परन्तु यह कष्ट उसका भविष्य सुखद बनाएगा" ।
पिता की बात सुनकर समस्त भगिनी और भ्राता कच से दूर हो गये । कच एक एक कर अपना सारा काम करने लगा । जब उसकी समस्त पैकिंग हो गई तो वह विदा लेने के लिए अपनी तीनों माताओं के पास गया । तीनों ने उसे आशीर्वाद देकर विदा किया । सभी भाई और बहनों ने अंतिम दिशा निर्देश देकर विदा ली । अंत में कच अपने पिता ब्रहस्पति के पास गया और उनके चरणों में लेट गया । ब्रहस्पति ने उसके मस्तक पर प्रेम से हाथ फिराया और कहा "मेरी आशा के केन्द्र बिन्दू तुम ही हो पुत्र । देवलोक का तुम्हें मान रखना है । ऐसा कोई काम मत करना जिससे गुरू शुक्राचार्य तुमसे क्रोधित हो जायें । उनके श्राप से बचना । उन्हें सदैव प्रसन्न रखना । यदि गुरू प्रसन्न रहें तो वे वह विद्या तो देते ही हैं जो उन्हें देनी है परन्तु वे वह विद्या भी दे देते हैं जिसे वे देना उचित नहीं समझते हैं । एक विद्यार्थी की पूंजी गुरू का आशीर्वाद ही होती है पुत्र । तुम पर शुक्राचार्य का सदैव वरद हस्त रहे , यही मेरा आशीर्वाद है" । ब्रहस्पति ने कच का मस्तक सूंघकर और उसे अपने सीने से लगाकर कहा ।
"आपका आशीर्वाद मेरे साथ है तात तो फिर सब कुछ वैसा ही होगा जैसा आप चाहते हैं । आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी तात" । कच ने अपने पिता के चरण स्पर्श किये , सामान उठाया और चल दिया ।
कच प्रसन्न मन से चला जा रहा था । वह मन ही मन कार्य योजना बनाने लगा कि उसे वहां जाकर क्या करना है ? कैसे रहना है ? क्या बात करनी है और क्या नहीं ? विचारों की अनवरत श्रंखला चलने लगी थी उसके मस्तिष्क में । जिस प्रकार गुरू ब्रहस्पति ने अपनी बुद्धिमत्ता से देवलोक में गुरू पद पाया था उसी प्रकार कच भी देवलोक का मान सम्मान बढाने में अपनी भूमिका निभाएगा । वह आशा और उमंगों से भरा हुआ एक महासागर लग रहा था जिसमें विचारों की तरंग लहरों सी उठ रही थी । वह मस्त पवन की तरह अपनी ही धुन में जा रहा था ।
"नारायण ! नारायण !" ध्वनि से उसकी विचार श्रंखला टूटी । सामने देवर्षि नारद खड़े थे । उनके अधरों पर एक मधुर मुस्कान थी । कच को देखकर उन्होंने कहा "कहां जा रहे हो वत्स"
कच ने देवर्षि नारद को प्रणाम किया और कहा "आपसे क्या छुपा हुआ है महामुनि । आप तो त्रिकालदर्शी हैं । सबके मन की बातें जानने में आप सिद्ध हस्त हैं । आप संभवत: मेरी परीक्षा ले रहे हैं और सब कुछ जानकर भी अंजान बन रहे हैं" । कच का विनीत स्वर नारद मुनि के मन को छू गया । देवर्षि नारद बोले
"वत्स ! तुम्हारा वाक् चातुर्य अद्भुत है । अपने उत्तर से तुमने मुझे प्रसन्न कर दिया है । मुझे विश्वास हो गया है कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त करने में अवश्य ही सफल हो जाओगे । पर एक बात का ध्यान रखना पुत्र" नारद जी बात कहते कहते रुक गए ।
"किस बात का ध्यान रखना है महामुनि" ? कच की आंखें उत्सुकता से नारद पर जम गई ।
"वत्स , शुक्राचार्य को क्रोध शीघ्र ही आ जाता है इसलिए तुम्हें अत्यंत धैर्य धारण करना होगा । मन और मस्तिष्क बर्फ सा शीतल रखना होगा । स्वप्न में भी ऐसा कोई कार्य मत करना वत्स जिससे शुक्राचार्य तुमसे क्रोधित हो जायें । यदि वे क्रोधित हो भी जायें तो भी उनके चरणों में गिरकर अपने अपराध के लिए क्षमा याचना कर लेना पुत्र । फिर वह अपराध चाहे तुमने किया हो या नहीं । क्षमा मांगने से मनुष्य छोटा नहीं होता है अपितु महान बनता है" ।
"आपने मुझे बहुत महत्वपूर्ण बातें बताई हैं महामुनि । मैं आपकी समस्त बातों का अवश्य ही ध्यान रखूंगा" । कच ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा ।
"अभी मेरी बात समाप्त नहीं हुई है पुत्र । अभी तो तुम्हें सबसे महत्वपूर्ण बात बतानी है" नारद जी ने गंभीर मुद्रा में कहा
"जी, महामुनि । बताइए"
"शुक्राचार्य यदि देह हैं तो देही है देवयानी । देही के बिना देह का कोई अस्तित्व नहीं होता है । शुक्राचार्य के प्राण देवयानी में बसते हैं । यदि शुक्राचार्य तलवार हैं तो ढाल है देवयानी । यदि शुक्राचार्य क्रोधित हों जायें तो शीतल जल बनकर उनका समस्त क्रोध दूर करेगी देवयानी । तुम दैत्यों के बीच में ऐसे रहोगे जैसे 32 दांतों के बीच में जिव्हा रहती है । दैत्य तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकते हैं । तुम्हें उन दैत्यों से अगर कोई बचा सकता है तो वह है देवयानी । देवयानी सभी रोगों की रामबाण औषधि है । इसलिए तुम देवयानी को सदैव प्रसन्न रखना । देवयानी यदि तुम पर विशेष कृपा रखेगी तो विश्व की कोई भी शक्ति तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकेगी । जब भी कोई संकट आयेगा तो देवयानी उस संकट को स्वयं पर ले लेगी चाहे उसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े । अत: मेरी बात का सदैव ध्यान रखना । देवयानी को अपने पक्ष में करके रखना । ऐसा प्रयास करना कि वह तुमसे कभी अप्रसन्न नहीं हो । शुक्राचार्य देवयानी के लिए साक्षात यमराज से भी युद्ध करने को तैयार हो जायेंगे । जयंती की मृत्यु के पश्चात उनका जीवन आधार देवयानी ही है । अत: तुम्हारी सफलता का पथ देवयानी नामक वन से होकर जाता है" । नारद जी ने बड़े भेद की बात कच को बताई ।
नारद जी की बातें कच को किसी वरदान से कम नहीं लगीं । उसे ब्रहास्त्र मिल गया था । अब सिद्धि प्राप्त करने में कोई मुश्किल नहीं आएगी । कच को ऐसा लगा कि ईश्वर उस पर कृपालु हैं तभी तो उन्होंने नारद जी को यहां पर भेज दिया था । वह प्रसन्न मन से पाताल लोक की ओर बढ़ चला ।
क्रमश :
श्री हरि
26.5.23
आँचल सोनी 'हिया'
30-Jun-2023 02:55 AM
Adwitiya
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Hari Shanker Goyal "Hari"
30-Jun-2023 07:49 AM
🙏🙏🙏
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Mahendra Bhatt
29-Jun-2023 09:06 PM
👌👌
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Hari Shanker Goyal "Hari"
30-Jun-2023 07:49 AM
🙏🙏🙏
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